बिहार में अब नामांकन और नौकरी में 75% आरक्षण लागू

बिहार में अब नामांकन और नौकरी में 75% आरक्षण लागू – समान्य वर्ग की बढ़ी मुश्किलें

विधेयक में कहा गया है कि सीधी रिक्तियों से 35 प्रतिशत सीटें और आरक्षित कोटि से 65 प्रतिशत सीटें भरी जाएंगी। आरक्षित कोटि के उम्मीदवार जो अपने गुणागुण के आधार पर चुने जाते हैं, उनकी गणना खुला गुणागुण कोटि की 35 प्रतिशत रिक्तियों के विरुद्ध की जाएगी, ना कि आरक्षण कोटि की रिक्तियों के विरुद्ध । पूर्व से प्रावधानित पिछड़े वर्ग की महिलाओं को विलोपित किया जाएगा। विधानसभा में पारित आरक्षण विधेयक में कहा गया है कि जाति सर्वेक्षण के दौरान एकत्र किये गए आंकड़ों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि अवसर और स्थिति में समानता के संविधान में पोषित लक्ष्य को पूरा करने के लिए पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बड़े हिस्से को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य सरकार की सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनुपातिक रूप से कम है। अनुपातिक समानता को प्राप्त करने के लिए उपायों और साधनों को प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। इसी क्रम में आरक्षण का दायरा बढ़ाया जा रहा है। विधानसभा की दूसरी पाली में वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने आरक्षण संबंधी दोनों विधेयकों को पेश किया। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शुरू से देश में 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है। बाद में गरीब सवर्णों को भी दस प्रतिशत आरक्षण दिया गया। बिहार में हुई जाति आधारित गणना के बाद जो बातें में सामने आई, उसके बाद आरक्षण का दायरा हमलोगों ने बढ़ाने का निर्णय लिया। इस पर सभी दलों की भी सहमति मिली है।

अन्य तीन विधेयक जो पारित हुए, उनमें बिहार सचिवालय सेवा (संशोधन) विधेयक 2023, बिहार माल और सेवा कर (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2023 और बिहार पंचायत राज (संशोधन) विधेयक, 2023 शामिल हैं।

वर्गपुराना आरक्षणअब हुआ
अतिपिछड़ा वर्ग1825
पिछड़ा वर्ग1218
पिछड़ा महिला0300
अनुसूचित जाति1620
अनुसूचित जन जाति0102
ईडब्ल्यूएस1010

झारखंड में ओबीसी आरक्षण सीमा 14 से बढ़ाकर 27%, एसटी की 26 से 28 व एससी की 10 से बढ़ाकर 12% करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित हुआ था। ईडब्ल्यूएस के लिए 10% का प्रावधान था। इसके जरिए नौकरियों में आरक्षण 77% किया गया था। राजभवन ने यह तर्क देते हुए लौटा दिया कि यह नियम के अनुकूल नहीं है।

अनुसूचित जाति22 प्रतिशत
अनुसूचित जनजाति6 प्रतिशत
अन्य पिछड़ी जातिया17 प्रतिशत
ईडब्ल्यूएस10 प्रतिशत
कुल आरक्षण55 प्रतिशत
ओबीसी27 फीसदी
अनुसूचित जाति21 फीसदी
अनुसूचित जनजाति2 फीसदी
ईडब्ल्यूएस10 फीसदी
कुल आरक्षण60 फीसदी
ओबीसी14 फीसदी
एससी10 फीसदी
एसटी26 फीसदी
ईडब्ल्यूएस10 फीसदी
कुल आरक्षण60 प्रतिशत

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए यहां के भाजपा नेता केंद्र सरकार से कहें। इससे राज्य का विकास और तेज होगा। साथ ही बिहार की तर्ज पर देशभर में जाति आधारित गणना कराकर आरक्षण का दायरा केंद्र बढ़ाए। जरूरत के अनुसार आरक्षण का दायरा और बढ़ाएं तो खुशी की बात होगी।

विधानमंडल द्वारा पारित कानून वैध है। सर्वोच्च न्यायालय आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण को मंजूरी दे चुका है, इसलिए अब बाधा नहीं है। संविधान की धारा-309 में सेवा स्थिति (सर्विस कंडिशन) को लेकर विधानमंडल कानून पारित करने के लिए सक्षम है। यह राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार वाली नौकरियों, सेवाओं, नामांकन प्रक्रिया आदि में लागू होगा।

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